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संरक्षण एवं परिरक्षण

संरक्षण एवं परिरक्षण

संस्कृति मंत्रालय के अन्तर्गत भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का रांची मंडल देश के पुरातात्विक शोध एवं सांस्कृतिक विरासत की सुरक्षा हेतु समर्पित एक अग्रणी संगठन है जिसका अधिकार क्षेत्र संपूर्ण झारखण्ड है। राष्ट्रीय महत्व के प्राचीन स्मारकों व पुरातात्विक स्थलों एवं ध्वंशावशेषों के संरक्षण, परिरक्षण तथा उनकी समुचित देखभाल इसकी सर्वोच्च प्राथमिकतायें हैं। इस स्थलों एवं स्मारकों के संरक्षण एवं परिरक्षण से पूर्व आवश्यक क्षेत्र सर्वेक्षण, उनका विस्तृत दस्तावेजीकरण, प्रलेखीकरण, क्षेत्रीय आकड़ों का संग्रहण, मानचित्रीकरण, रेखाचित्रण, छायाचित्रण एवं आवश्यक कार्यो की पहचान आदि की जाती हैं। इसके तहत प्रयुक्त निर्माण सामग्री का संकलन भी शामिल है ताकि प्रयोगशाला में जांच कर उनका विश्लेष्ण किया जा सके एवं तदनुसार संरक्षण हेतु आवश्यक सामग्री प्रयुक्त की जा सके। इसके पश्चात पुरातात्विक कार्य संहिता एवं इस हेतु बनाये गई अन्तराष्ट्रीय तौर- तरीकों का ध्यान रखते हुये सही तकनीक का प्रयोग किया जाता है। संरचना के सभी घटकों का सागोपांग अध्य्यन भी इसमें शामिल हैं ताकि उनका संरक्षण ज्यादा स्थायी हो और भविष्य के खतरों से ज्यादा सुरक्षित रह सके ।

इन स्मारकों एवं पुरातात्विक स्थलों के संरक्षण, परिरक्षण तथा मरम्मत कार्यो हेतु पुरातत्वविदों, संरक्षणकर्ताओं तथा तकनीकी रूप से कुशल पेशेवर लोगों का एक समुह होता है जो उच्चाधिकारियों तथा मंडल प्रमुख के निर्देशों पर इन कार्यों को अंजाम देता है ।

1. बेनीसागर प्राचीन सरोवर तालाब तथा मंदिर व प्रतिमाओं के अवशेष, बेनीसागर, जिला प. सिहंभूमः

यहां वैज्ञानिक रीति से किये गये मलबों को हटाने के कार्य के परिणाम स्वरूप ईटों से बने संरचनाओं के अवशेष प्रकाश में आए हैं । इनमें से अधिकतर मंदिरों के अवशेष हैं जो शैव पंथ से जुडे हुये हैं इन ईटों की संरचनाओं में से ज्यादातर अपने वास्तविक अक्ष से बाहर की ओर झुक गये थे या कहीं गिरे हुये थे जिन्हे बाहर निकाल कर, उन्हें पुनः व्यवस्थीत करके तथा उनके जोडो को चुने के मसाले के प्रयोग से अपनी मौलिक अवस्था वाली स्थिति मे संरक्षित कर दिया गया है ।

02. शिवलिंग सहित एक प्राचीन देवालय, खेकपरता, जिला लोहरदगाः

इस पुरास्थल पर भी वैज्ञानिक रीति से किये गये मलबों को हटाने के परिणाम स्वरूप कई लधु देवालयों के आधार भाग प्रकाश में आए हैं । ये सभी शैव पंथ को समर्पित है। ये सरचनाएं गढे हुऐ पाषाण खण्डों द्वारा निर्मित है। ये भी कई स्थल से लुप्त हो गये थे या अपने अक्ष से बाहर हो गये थे या उनको जोड़ने वाली मसालों का लोप हो गया था या उन पाषाण खण्डों में दरारें आ गई थीं अतः समस्याओं की पहचान कर आवश्यक भराव और पाषाण खण्डों को फिर से व्यवस्थित कर उन्हें उनके मौलिक स्वरूप में संरक्षित कर दिया गया ।

03. जामा मस्जीद, हदफ, जिला- साहेबगंज

ईटों से बनी इस संरचना में कई स्थलो से ईटें बाहर निकल आई थी या दीवारों मे दरारें आ गई थी या उसके कुछ भाग नष्ट हो चुके थे । अतः उनके टुटे हुये खण्डों की मरम्मत, प्लास्टर की ऐजिंग, मसालों का भराव जैसे उपायों द्वारा इसके संरक्षण का कार्य किया गया है । इसके कुछ गुम्बदों का जीर्णोद्धार अतीत में किया गया था । इस समय भी बर्ष 2019-20 के दरम्यान इसके दो गुम्बदों के जीर्णोद्धार तथा मुख्य मस्जिद के पीछे स्थित एक छोटी मस्जिद के संरक्षण का कार्य अपने गति पर है।

04. संभावित सुरंग व भूतिगत कक्ष एवं बारादरी, अराजीमोखीमपुर जिला – साहेबगंज

ईटों से बनी इस संरचना में भी कई स्थलों पर इसके कुछ भाग नष्ठ हो गये थे या अपनी अक्ष से बाहर निकल आये थे । अतः उनके संरक्षण हेतु अवांच्छित उगे हुये पेड़ पौधो की सफाई, दरारों एवं जोड़ों में मसालों का भराव, मेहराबों का जीर्णोद्धार तथा विलग ईटों को फिर से व्यवस्थित कर इस इमारत को अपने मौलिक स्वरूप मं संरक्षित कर दिया गया है ।

05. हाराडीह मंदिर, जिला- रांची

यहां भी बर्ष 2014-15 में वैज्ञानिक रीति से किये गये मलबों की सफाई से ईटों से बनी कतिपय संरचनाओं के अवशेष तथा अनेक पाषाण खण्डों से बने लघुदेवालयों के आधार भाग प्रकाश में आये थे । इनमें से ईटों से बनी संरचनाओं के कुछ भाग का संरक्षण किया गया है तथापि लघुदेवालयों के संरक्षण का कार्य किया जाना अभी शेष है।